Friday, April 23, 2010

'जो शाशवत है'


मै जानती हूँ ।
वो हमेशा मेरे साथ है ।
परछाईयाँ जब साथ छोड़े
उस समय मेरे साथ है ।

अज्ञात है जो ,
उसके पीछे हम है चलते ।
जो दिखे,
धोखा कहता ।
जो नहीं ,
विश्वास उस पर क्यू है करता ?

चक्र है वो रोशनी का ।
फैले जहा , विश्वास भरता ।
हो अँधेरा जब दिलो मे ,
एक किरण आरब्ध है वो
छोड़ तिमिरो के वो साये ,
एक नया प्रकाश है वो ।

कौन जानता है उसे 'यहाँ'
फिर भी रुहों से जुडा है।
'साथ खुद का जब हम छोड़े
देख पीछे वो खड़ा है '

Saturday, April 17, 2010

व्योम.


व्योम।
शून्य।
कुछ नहीं होता ।
पर कुछ साकार करता है

जो अनकहा है।
झंझोड़ देता है
जो शांत अचल गंभीर है
स्थिर है शून्य मे अब तक

परदे के पीछे से परदे हटते जा रहे है
उनके कुछ लिखे कुछ अनलिखे शब्दों मे,
व्योम है।

कुछ पता नहीं चलता
क्या कहानी है उसमे छुपी।
वक़्त के हर क्षण की
रवानी है उसमे रुकी,

ठहर गया है सब कुछ
वक़्त को भींचे हुए ,
पर वक़्त चलता जाए
उस व्योम के तले...