Saturday, April 17, 2010

व्योम.


व्योम।
शून्य।
कुछ नहीं होता ।
पर कुछ साकार करता है

जो अनकहा है।
झंझोड़ देता है
जो शांत अचल गंभीर है
स्थिर है शून्य मे अब तक

परदे के पीछे से परदे हटते जा रहे है
उनके कुछ लिखे कुछ अनलिखे शब्दों मे,
व्योम है।

कुछ पता नहीं चलता
क्या कहानी है उसमे छुपी।
वक़्त के हर क्षण की
रवानी है उसमे रुकी,

ठहर गया है सब कुछ
वक़्त को भींचे हुए ,
पर वक़्त चलता जाए
उस व्योम के तले...






3 comments:

  1. hey anuradha. welcome 2 blogspot... and i love this poem dear..
    keep writing :)

    ReplyDelete
  2. hey mam ...aapki poem smjh me nhi aayi bt jo bhi h achi h ...gud goin..v all r wid u..

    ReplyDelete
  3. hi..grt start..hope to get plenty of like this..keep it up :)

    ReplyDelete