
तुमने सोचा,
कभी हम ऐसा कह जाते है मानो
चोटी हमारे हाथो को छू रही है ।
पर वो तो एक चेहरा था उसका,
सच्चाई तो हमसे आँख मिचौली कर रही है
आगे की कहानी कुछ अलग ही कह रही है।
जो अनकहा है, शब्दों से परे है
किसी के समर्पण की कहानी बह रही है।
सच्चाई हमसे आँख मिचौली कर रही है।
जो रुकना नहीं जानती ,
बस चलती जा रही है
किसी न किसी के प्यार की प्यास बुझती जा रही है।
बिन कहे, बिन सुने, शब्दों से परे
किसी की समर्पण की कहानी बह रही है।
सच्चाई हमसे आँख मिचौली कर रही है।
न कुछ पूछा, न हमने कुछ बताया ,
न जाने क्या है उसमे........
अनजानी सी लहर आ रही है।
किसी के समर्पण की कहानी बह रही है।
सच्चाई हमसे आँख मिचौली कर रही है।
वो चोटी अब हमसे दूर......
उस समर्पण के पास निखर रही है।
सच्चाई हमसे आँख मिचौली कर रही है।
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